शिक्षा का असली मकसद (स्कूल के शिक्षक और छात्र के बीच संवाद आधारित लेख)
शिक्षा का असली मकसद
(स्कूल के शिक्षक और छात्र के बीच संवाद आधारित लेख)
परिदृश्य:
यह चर्चा एक सरकारी स्कूल के कक्षा 10वीं के विद्यार्थियों और उनके समाजशास्त्र शिक्षक के बीच हो रही है। विषय है— "शिक्षा का असली मकसद"। शिक्षक का नाम श्रीनाथ सर है, और छात्र मुख्य रूप से रवि, सुलोचना, आरिफ, और अमन हैं।
(कक्षा में संवाद शुरू होता है)
श्रीनाथ सर: बच्चों, आज हम पढ़ाई-लिखाई की एक अहम चीज़ पर बात करेंगे— शिक्षा का असली मकसद क्या है? क्या सिर्फ नौकरी पाना ही शिक्षा का उद्देश्य है या कुछ और भी?
(बच्चे एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं। कुछ संकोच में हैं, तो कुछ सोच में डूबे हुए।)
रवि: सर, हमारे माता-पिता तो यही कहते हैं कि पढ़ाई का मकसद अच्छी नौकरी पाना है, जिससे हम अच्छा पैसा कमा सकें।
सुलोचना: जी सर, अगर नौकरी नहीं मिले तो पढ़ाई का क्या फायदा?
आरिफ: हां, और नौकरी भी सिर्फ सरकारी हो, तभी लोग मानते हैं कि हमने कुछ किया है।
अमन: लेकिन सर, पढ़ाई से हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। जैसे गणित हमें तर्क करना सिखाता है और इतिहास हमें समाज को समझने में मदद करता है।
श्रीनाथ सर (मुस्कुराते हुए): बहुत बढ़िया! तुम सबकी बातें सही हैं, लेकिन क्या शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी तक सीमित होना चाहिए? क्या इससे समाज की भलाई नहीं होनी चाहिए?
रवि: सर, हम कैसे तय करें कि शिक्षा का असली मकसद क्या है?
श्रीनाथ सर: चलो, इसे एक उदाहरण से समझते हैं। बताओ, क्या महात्मा गांधी, ज्योतिबा फुले, बाबा साहब आंबेडकर, भगत सिंह और पेरियार ने पढ़ाई केवल नौकरी के लिए की थी?
(कक्षा में कुछ सेकंड की चुप्पी छा जाती है। फिर सुलोचना बोलती है।)
सुलोचना: नहीं सर, उन्होंने तो समाज को बदलने के लिए शिक्षा ली थी।
आरिफ: बाबा साहब ने तो कहा था कि शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है।
अमन: और भगत सिंह ने तो नौकर बनने के बजाय क्रांति के लिए किताबें पढ़ीं।
श्रीनाथ सर: बिल्कुल सही! शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने का ज़रिया नहीं, बल्कि समानता, न्याय और स्वतंत्रता के लिए भी ज़रूरी है। बाबा साहब ने कहा था— "शिक्षा वो हथियार है जिससे समाज की सबसे कमजोर जाति को भी ताकतवर बनाया जा सकता है।"
रवि: लेकिन सर, आजकल शिक्षा का मतलब सिर्फ अंक लाना और परीक्षा पास करना रह गया है।
श्रीनाथ सर: यह समस्या है, रवि। हमारी शिक्षा प्रणाली सोचने और तर्क करने की क्षमता विकसित करने के बजाय, रटने और अंकों पर ध्यान देती है।
सुलोचना: तो हमें क्या करना चाहिए, सर?
श्रीनाथ सर: हमें शिक्षा को "समाज सुधार और आत्मनिर्भरता" से जोड़ना होगा। क्या तुम जानते हो कि ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा का असली मकसद क्या बताया था?
आरिफ: जी हां! उन्होंने कहा था कि शिक्षा से समाज में बराबरी लानी चाहिए, खासकर दलितों और महिलाओं के लिए।
श्रीनाथ सर: सही कहा! और डॉ. आंबेडकर ने संविधान लिखा, भगत सिंह ने सामाजिक क्रांति का सपना देखा, कांशीराम ने राजनीतिक चेतना जगाई—इन सबके पीछे शिक्षा ही थी। लेकिन यह शिक्षा नौकरी के लिए नहीं, बल्कि एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए थी।
अमन: मतलब, शिक्षा का असली मकसद सिर्फ व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार भी होना चाहिए?
श्रीनाथ सर: हां! और इसीलिए हमें "भारतराष्ट्र" की परिकल्पना को आगे बढ़ाना होगा। एक ऐसा राष्ट्र, जहां शिक्षा सबको बराबरी दे, लोगों को सोचने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करे।
(छात्र अब गंभीर होकर सोचने लगे।)
रवि: सर, तो हमें क्या करना चाहिए ताकि शिक्षा सही मायनों में सबके लिए फायदेमंद हो?
श्रीनाथ सर: इसके लिए हमें तीन बड़े बदलाव करने होंगे—
- शिक्षा में तर्क और विचारधारा को जगह देनी होगी। हमें सिर्फ किताबें रटने के बजाय, यह सिखाना होगा कि हम समाज को कैसे बेहतर बना सकते हैं।
- शिक्षा को रोजगार से जोड़ने के साथ-साथ सामाजिक सुधार से भी जोड़ना होगा। अगर पढ़ाई का मकसद सिर्फ पैसा कमाना हुआ, तो हम इंसानियत को भूल जाएंगे।
- संविधान, सामाजिक न्याय, और समानता को शिक्षा का आधार बनाना होगा। इससे हम भारत को जातिवाद, गरीबी और अन्याय से मुक्त कर सकते हैं।
(अब छात्र उत्साहित हो गए हैं।)
सुलोचना: सर, क्या हम अपने स्कूल में एक स्टूडेंट क्लब बना सकते हैं, जहाँ हम बाबा साहब, भगत सिंह, फुले और पेरियार के विचारों पर चर्चा करें?
श्रीनाथ सर (खुश होकर): यही तो असली शिक्षा है! अगर तुमने सोचना और बदलाव लाने की ठान ली, तो तुम्हारी पढ़ाई सार्थक हो जाएगी।
रवि: हम अपने गाँव में बच्चों को सिखाएँगे कि शिक्षा सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, बल्कि बराबरी और न्याय के लिए भी है।
आरिफ: हां, हमें शिक्षा को सिर्फ किताबों में बंद नहीं रखना चाहिए।
अमन: अब हम परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ समाज सुधार की भी सोचेंगे।
(पूरी कक्षा में उत्साह का माहौल बन जाता है। बच्चों को आज शिक्षा का नया अर्थ समझ में आ गया है।)
निष्कर्ष:
शिक्षा का असली मकसद सिर्फ अच्छी नौकरी और पैसा कमाना नहीं, बल्कि एक बेहतर समाज बनाना है। जब तक हम शिक्षा को सिर्फ अंक और डिग्री तक सीमित रखेंगे, तब तक हम अपने राष्ट्र को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। "भारतराष्ट्र" की परिकल्पना तभी साकार होगी जब हर बच्चा सोचने, तर्क करने और बदलाव लाने की शक्ति से लैस होगा।
(यह लेख शिक्षा की नई परिभाषा को स्थापित करता है, जो भारत को एक समानता, न्याय और सामाजिक उत्थान की ओर ले जाने का संदेश देता है।)
क्या आप भी इस विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं? 🚀🔥
धन्यवाद
बिनोद कुमार
Rohit Kumar
ReplyDelete8935865990
ReplyDeleteYes sir
ReplyDeleteशिक्षा का सार्थक परिभाषा 🙏
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