पढ़ाई और रोजगार का रिश्ता (कॉलेज कैंटीन में छात्रों की बातचीत पर आधारित लेख)

 

 पढ़ाई और रोजगार का रिश्ता

(कॉलेज कैंटीन में छात्रों की बातचीत पर आधारित लेख)

परिदृश्य:

यह चर्चा एक सरकारी कॉलेज की कैंटीन में हो रही है, जहाँ चार दोस्तअंशुल, सीमा, कबीर और नवीनचाय और समोसे के साथ बैठकर बातचीत कर रहे हैं। वे सभी ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष के छात्र हैं और इस समय नौकरी और भविष्य की संभावनाओं को लेकर चिंतित हैं।

(कैंटीन में संवाद शुरू होता है)

अंशुल (चाय का घूंट लेते हुए): यार, अब ग्रेजुएशन पूरी होने वाली है, लेकिन समझ नहीं रहा कि आगे क्या होगा। कहीं नौकरी मिलेगी भी या नहीं?

सीमा (गंभीर स्वर में): सही कहा, मैं भी यही सोच रही थी। इतने सालों से पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन अब लग रहा है कि हमें असल जिंदगी के लिए तैयार ही नहीं किया गया।

कबीर (हँसते हुए): हाँ, कॉलेज में जितना भी पढ़ाया गया, उसमें से शायद ही कुछ नौकरी में काम आएगा। और असली परेशानी तो यह है कि कंपनियाँ अनुभव माँगती हैं, जो हमारे पास है ही नहीं।

नवीन (चिंतित होकर): लेकिन सोचने वाली बात यह है कि शिक्षा और रोजगार का आपस में कोई सही तालमेल ही नहीं है। हम यहाँ तीन साल से पढ़ाई कर रहे हैं, पर हमें नौकरी के लिए क्या चाहिए, यह किसी ने बताया ही नहीं।

अंशुल: बिल्कुल! हमारे देश में शिक्षा और रोजगार के बीच बहुत बड़ा गैप है। हमें किताबों का ज्ञान तो दे दिया जाता है, लेकिन यह नहीं सिखाया जाता कि असल ज़िंदगी में उसे कैसे लागू करें।

सीमा: और सबसे बड़ी समस्या यह है कि डिग्री लेकर भी नौकरी की गारंटी नहीं है। कहीं सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भरो, तो कभी प्राइवेट कंपनियों के इंटरव्यू में रिजेक्ट हो जाओ।

कबीर: हाँ, और अगर नौकरी मिल भी जाए, तो सैलरी इतनी कम होती है कि ठीक से गुजारा भी मुश्किल है।

नवीन: यही कारण है कि हमारे देश में डिग्रीधारकों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन बेरोजगारी भी उतनी ही बढ़ रही है।

(शिक्षक प्रोफेसर वर्मा जी भी बातचीत में शामिल होते हैं)

(इसी दौरान, कॉलेज के समाजशास्त्र के प्रोफेसर वर्मा जी कैंटीन में आते हैं और छात्रों की चर्चा सुनकर पास आकर बैठ जाते हैं।)

प्रो. वर्मा: मुझे तुम्हारी बातें सुनकर खुशी हुई कि तुम लोग पढ़ाई और रोजगार के बारे में गंभीरता से सोच रहे हो। लेकिन क्या तुमने कभी यह सोचा कि शिक्षा और रोजगार का रिश्ता आखिर क्यों कमजोर है?

अंशुल: सर, यही तो समझ नहीं रहा। आखिर ऐसा क्यों है कि हमारी शिक्षा हमें नौकरी के लिए तैयार नहीं कर पाती?

प्रो. वर्मा: क्योंकि हमारी शिक्षा प्रणाली रचनात्मकता और व्यावहारिकता पर कम और रटने पर ज्यादा जोर देती है। यह हमें सिर्फ नंबर लाने वाला बना रही है, लेकिन समस्या हल करने वाला नहीं।

सीमा: लेकिन सर, इसका समाधान क्या हो सकता है?

प्रो. वर्मा: समाधान यही है कि शिक्षा को रोजगार से जोड़ना होगा। हमें अपनी पढ़ाई को सिर्फ डिग्री तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसे कौशल (skills), उद्यमिता (entrepreneurship) और सामाजिक सुधार से भी जोड़ना चाहिए।

कबीर: मतलब, हमें पढ़ाई के साथ-साथ ऐसे हुनर भी सीखने चाहिए जो हमें खुद के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद करें?

प्रो. वर्मा: बिल्कुल! देखो, डॉ. बाबा साहब आंबेडकर ने शिक्षा को सबसे बड़ा हथियार बताया था, लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि शिक्षा का उपयोग समाज में बदलाव लाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए होना चाहिए।

नवीन: लेकिन सर, आजकल के हालात में युवा आत्मनिर्भर कैसे बन सकते हैं?

प्रो. वर्मा: इसके लिए तीन चीजें ज़रूरी हैं

  1. कौशल विकास (Skill Development): सिर्फ किताबें पढ़ने से काम नहीं चलेगा, बल्कि हमें कंप्यूटर, मार्केटिंग, कम्युनिकेशन स्किल्स जैसी चीजें भी सीखनी होंगी।
  2. उद्यमिता (Entrepreneurship): नौकरी के पीछे भागने के बजाय, हमें खुद के बिज़नेस, स्टार्टअप और स्वरोजगार के बारे में सोचना होगा।
  3. सामाजिक जागरूकता: हमें समाज के असली मुद्दों को समझना होगा और शिक्षा को समाज सुधार का माध्यम बनाना होगा।

सीमा: सर, इसका मतलब है कि हमें सिर्फ सरकारी नौकरियों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए?

प्रो. वर्मा: बिल्कुल! देखो, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, भगत सिंह, और कांशीराम जैसे महापुरुषों ने सिर्फ नौकरी पाने के लिए शिक्षा नहीं ली थी। उन्होंने इसे सोचने और बदलाव लाने के लिए इस्तेमाल किया। हमें भी इसी सोच को अपनाना होगा।

अंशुल: मतलब, हमें शिक्षा को एक समाज सुधार और आत्मनिर्भरता के साधन के रूप में देखना चाहिए, कि सिर्फ नौकरी पाने के लिए?

प्रो. वर्मा: हां! हमें एक नया भारत, यानी "भारतराष्ट्र" बनाना है, जहाँ शिक्षा सिर्फ डिग्री लेने का माध्यम नहीं, बल्कि रोजगार और सामाजिक उत्थान का साधन हो।

(बातचीत का निष्कर्ष)

(छात्र अब सोच में पड़ गए हैं, लेकिन उनके अंदर एक नई उम्मीद जागी है।)

कबीर: सर, हम क्या कर सकते हैं जिससे हम अपनी शिक्षा को रोजगार और समाज से जोड़ सकें?

प्रो. वर्मा: सबसे पहले, तुम अपने पढ़ाई के साथ कौशल सीखना शुरू करो। ऑनलाइन कोर्स, कार्यशालाएँ (workshops) और इंटर्नशिप करके अपनी व्यावहारिक क्षमता बढ़ाओ।
दूसरा, नौकरी के अलावा उद्यमिता के बारे में भी सोचो। अगर तुम खुद का कोई छोटा बिज़नेस शुरू कर सको, तो यह रोजगार का एक नया विकल्प बन सकता है।
तीसरा, समाज से जुड़े मुद्दों को समझो और अपनी शिक्षा को उनके समाधान में इस्तेमाल करो।

सीमा: सर, हम अपने कॉलेज में एक "कौशल विकास और रोजगार क्लब" शुरू कर सकते हैं, जहाँ हम नए स्किल्स सीखने और उद्यमिता पर चर्चा करने के लिए छात्रों को जोड़ सकें?

प्रो. वर्मा (मुस्कुराते हुए): यही तो असली बदलाव है! अगर तुमने अपनी शिक्षा को रोजगार और समाज सुधार से जोड़ने की ठान ली, तो तुम एक नए भारत"भारतराष्ट्र" के निर्माण में योगदान दोगे।

(छात्र अब जोश में भर जाते हैं। वे तय करते हैं कि वे शिक्षा को सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और समाज सुधार के लिए भी अपनाएँगे।)

निष्कर्ष:

इस चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा और रोजगार का सही संबंध तभी बन सकता है, जब पढ़ाई को कौशल, उद्यमिता और सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ा जाए। अगर हम "भारतराष्ट्र" की परिकल्पना को साकार करना चाहते हैं, तो हमें शिक्षा को सिर्फ डिग्री तक सीमित रखकर, उसे रोजगार और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाना होगा।

तो क्या आप भी अपनी शिक्षा को नए भारत के निर्माण में योगदान देने के लिए तैयार हैं? 🚀🔥

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